
दो दिवसीय अखिल भारतीय आदिवासी लेखक सम्मेलन रायपुर में संपन्न
RNE Network.
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली एवं छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय आदिवासी लेखक सम्मेलन 7- 8 जून 2025 को नवीन विश्राम भवन, सिविल लाइंस,रायपुर में संपन्न हुआ।
उद्घाटन सत्र में डॉ. माधव कौशिक, अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी; प्रसिद्ध लोक-साहित्यकार डॉ. महेन्द्र कुमार मिश्र; साहित्य अकादमी और छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद से श्री शशांक शर्मा; और छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केशरीलाल वर्मा,डॉ. के. श्रीनिवासराव, सचिव, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली उपस्थित थे। सत्र की शुरुआत डॉ. के. श्रीनिवासराव के स्वागत भाषण से हुई, जिसमें उन्होंने साहित्य अकादेमी द्वारा मौखिक साहित्य और आदिवासी सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण हेतु किए जा रहे प्रयासों का उल्लेख किया।
उद्घाटन भाषण में डॉ. माधव कौशिक ने भारत की सांस्कृतिक विरासत में आदिवासी साहित्य के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने मौखिक परंपराओं के संरक्षण की आवश्यकता और आदिवासी लेखकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए संरक्षित करने के व्यावहारिक उपाय जैसे ऑडियो रिकॉर्डिंग, दृश्य-श्रव्य दस्तावेज़ और सामुदायिक समूह बनाने की सिफारिश की। मुख्य वक्तव्य में डॉ. महेन्द्र कुमार मिश्र ने आदिवासी साहित्य को पहचान, ज्ञान और समावेशी विकास के लिए संरक्षित करने का आह्वान किया। मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी, छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के श्री शशांक शर्मा ने संस्कृति के तीन स्तर—नगर, ग्राम और अरण्य—और उनके आपसी संबंधों पर विश्लेषण प्रस्तुत किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केशरीलाल वर्मा ने अध्यक्षीय टिप्पणी में अनुसूचित भाषाओं के विकास और भावी पीढ़ियों के लिए आदिवासी भाषा-संस्कृति के संरक्षण में लेखकों की भूमिका को रेखांकित किया।
प्रथम सत्र जो “संस्कृति के संरक्षण में आदिवासी भाषाओं की महत्ता” पर एक पैनल चर्चा के रूप में था कि अध्यक्षता छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद के निदेशक श्री विवेक आचार्य ने की। इसमें तेलंगाना से श्री वी.
रामकोटी ने दक्षिणी भाषाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला:
मध्य प्रदेश से डॉ. माधुरी यादव ने मध्य भारत की आदिवासी भाषाओं की जीवंतता और उनके अनेक त्योहारों से गहरे संबंध को रेखांकित किया, राजस्थान से डॉ. उपेन्द्र अनु ने मराठी, राजस्थानी और गुजराती समेत पश्चिमी भारत की भाषाओं पर चर्चा की और अनेक पर्वों की समाजशास्त्रीय भूमिका को उजागर किया। द्वितीय सत्र बहुभाषी कहानी-पाठ को समर्पित था, जिसकी अध्यक्षता श्री वी. रामकोटी ने की।
इसमें नीलूराम कोर्राम (गोंडी), एनाम गोमांगा (सौरा), शिवशंकर कश्यप (भतरी) और जयश्री साहू (कोशली) ने अपनी कहानियों का पाठ किया।
तृतीय सत्र बहुभाषी काव्यपाठ को समर्पित था। इसकी अध्यक्षता डॉ. माधुरी यादव ने की। इसमें संतोषी श्रद्धा ‘महंत’ (बिलासपुरी), दीनदयाल साहू (छत्तीसगढ़ी), संजू साहू ‘पूनम’ (सम्बलपुरी) और धर्मानंद गोजे (सरगुजिया) ने अपनी कविताओं का पाठ किया।
आज दूसरे दिन चतुर्थ सत्र से शुरुआत हुई जिसमें विरासत की रक्षा के लिए आदिवासी साहित्य का वैभव विषय पर गहरी चर्चा की गई । इस सत्र में जितेंद्र वसावा, डॉ बी रघु, डॉ पी. शिवरामकृष्ण ने भाग लिया।
पंचम सत्र का विषय था बहुभाषी कहानी पाठ। इस सत्र की अध्यक्षता प्रख्यात लोकसाहित्यविद आचार्य चित्तरंजन कर ने किया। इस सत्र में गीता, बंजारा में, बी आर साहू, छत्तीसगढ़ी में, विक्रम सोनी, हलबी में और स्वाति आनंद, पारधी में अपनी कहानियॉ प्रस्तुत कीं ।
दिन का अंतिम षष्ठ सत्र में बहुभाषी कविता पाठ का आयोजन हुआ। इस सत्र में बैगानी से धनीराम कडमिया, छत्तीसगढ़ी से शकुंतला तरार, खड़िया से नीतू कुसुम बिलुंग, कुडुख से प्रिस्का कुजूर और वारली से महेश्वरी वी गावित ने अपनी कविताओं से मंत्र मुग्ध किया। अंत में डॉ एन सुरेश बाबु, उप सचिव, साहित्य अकादेमी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।